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Shri Krishana Janmashtami: 5242 birth celebration on 25 August in Agra region
आगरालीक्स …जन्माष्टमी पर कन्हैया 5242 साल के हो जाएंगे, उनके 5242 वे जन्मदिन पर ब्रज में जश्न मनेगा, 25 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह में अष्टमी के दिन मध्य रात्रि रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार 24 अगस्त को रात्रि दस बजकर 16 मिनट पर अष्टमी प्रवेश कर रही है, जो अगले दिन 25 अगस्त को दस बजकर 16 मिनट तक रहेगी। ऐसे में 24 अगस्त को जन्म के समय (मध्य रात्रि) अष्टमी है तो 25 अगस्त की मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र है। 24 को स्मार्ता लोग श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे। 25 अगस्त को वैष्णव जन इस उत्सव से आनंदित होंगे।
ज्योतिष गणित के अनुसार भगवान कृष्ण द्वापर के अंत में धरती पर 125 वर्ष तक रहे। कलियुग की आयु 5117 वर्ष बताई गई है। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण की 5242 साल के हो जाएंगे। 25 अगस्त को ब्रज में मनाई जाने वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर वे 5243वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। प्राचीन निर्भय सागर पंचांग में भी इस गणित का उल्लेख है।
24 की मध्य रात्रि से 25 तक जन्माभिषेक
प्राचीन ठाकुर केशव देव मंदिर के गोस्वामी शंकर लाल के अनुसार उनके यहां जन्माभिषेक 24 अगस्त की मध्य रात्रि को होगा। वहीं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के संयुक्त अधिशासी अधिकारी राजीव श्रीवास्तव और द्वारिकाधीश मंदिर के विधि एवं मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि उनके यहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्माभिषेक 25 अगस्त को मनाया जाएगा। श्रीमद्भागवत कथा आयोजन समिति के अध्यक्ष अमित भारद्वाज ने बताया पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में उदय तिथि को प्रबल माना जाता है।
रखा जाता है व्रत
स्कंद पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है। अन्त्य की दोनों में परा ही लें।