Prepare & crack medical entrance exam in Agra
आगरालीक्स ….हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के रिजल्ट आने लगे हैं, इसके साथ ही मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश की तैयारी को लेकर छात्र चिंतित हैं। नीट के बाद क्या तैयारी के लिए कोचिंग जरूरी है, किस तरह के कोचिंग में प्रवेश लें, हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए या इंटरमीडिएट पास करने के बाद ही तैयारी करें। इस तरह के तमाम सवाल छात्रों के दिमाग में आ रहे हैं।
अब देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस में प्रवेश के लिए ऑल इंडिया स्तर पर नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टैस्ट एनआईआईटी (नीट) आयोजित की जाएगी। अभी तक सीबीएसई की ओर से आयोजित की जाने वाली ऑल इंडिया प्री-मेडिकल परीक्षा एआईपीएमटी के साथ-साथ छात्रों के पास राज्य स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षाओं का विकल्प खुला रहता था, ऐसे में छात्र किसी स्तर पर एआईपीएमटी में चूक जाएं तो वे राज्य स्तर पर होने वाले प्री मेडिकल टेस्ट से प्रवेश ले सकता था। लेकिन अब ऑल इंडिया स्तर पर लागू नीट के बाद से अब देशभर में मेडिकल की पढ़ाई के लिए एक ही अवसर रह गया है, जिसमें छात्र का प्रदर्शन उसकी सफलता का पैमाना होता है।
कोचिंग जरूरी है
देश भर की करीब 30 हजार एमबीबीएस सीटों पर प्रवेश के लिए 10 लाख से ज्यादा अभ्यर्थी परीक्षा देते हैं। ऐसे में यदि आप अच्छे संस्थान में दाखिला चाहते हैं तो उसके लिए रैंक अच्छी होनी चाहिए। यह घर पर तैयारी करने पर संभव नहीं है, प्री मेडिकल टेस्ट में सफलता के लिए अच्छे एक्सपर्ट्स की देखरेख में तैयारी करनी चाहिए। इससे परीक्षा का पैटर्न, किस तरह से आंसर दिए जाएं, कौन सा सब्जेक्ट वीक है, उसकी तैयारी वैज्ञानिक तरीके से कैसे की जा सकती है, यह अच्छे एक्सपर्ट से बता सकते हैं। इसी के चलते अब हाईस्कूल के बाद से ही प्री मेडिकल की तैयारी होने लगी है।
इस तरह करनी होगी तैयारी
राज्य स्तर के प्री मेडिकल टेस्ट और एआईपीएमटी के लिए अलग-अलग तैयारी कराई जाती है, एआईपीएमटी में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम आता है, जबकि सीपीएमटी सहित राज्य स्तर के प्री मेडिकल टेस्ट में राज्य बोर्ड का पाठ्यक्रम आता है। अब देशभर में नीट अनिवार्य कर दिया गया है, इसलिए एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम पर आधारित तैयारी ही अनिवार्य हो गई है।
ऐसे कराई जा रही तैयारी
प्री मेडिकल टेस्ट के लिए कोचिंग सेंटरों में तीन तरह से तैयारी कराई जा रही है। पहला पाठयक्रम 10वीं के बाद से शुरू होता है और 11वीं-12वीं में अध्ययन के साथ-साथ बच्चे तैयारी जारी रखते हैं। दूसरा पाठ्यक्रम उन बच्चों के लिए है, जो 12वीं के बाद तय करते हैं कि उन्हें मेडिकल एंट्रेंस में बैठना है। ये छात्र ड्रॉप आउट सिस्टम के तहत एक साल पूरी तरह से फोकस होकर कोचिंग लेते हैं। तीसरा पाठ्यक्रम क्रैश कोर्स होता है, जो उन छात्रों के काम आता है, जो 12वीं की परीक्षा देने के ठीक बाद मेडिकल एंट्रेंस देना चाहते हैं। इस पाठ्यक्रम को अपनाने वाले छात्रों का सक्सेस रेट कम रहता है।
70 से 80 हजार शुल्क
कोचिंग इंस्टीट्यूट्स का खर्चा 70 से 80 हजार रुपये आता है। शॉर्ट टर्म क्रैश कोर्स 10 से 20 हजार रुपये लिए जा रहे हैं।
संभल कर चुने कोचिंग इंस्टीटयूट
सही इंस्टीट्य़ूट से तैयारी करने पर सपफलता की उम्मीद बढ जाती है। इसके लिए इंस्टीटय़ूट के पूर्व में किये गये प्रदर्शन को देख सकते हैं। इसके अलावा वहां उपलब्ध पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर और उपलब्ध फैकल्टी भी अहम है। यदि फैकल्टी अच्छी नहीं है और पाठ्यक्रम अपडेट नहीं है तो परिणाम अच्छे नहीं आएंगे।