गुर्दे की पथरी कब निकल गई नहीं चलेगा पता
आगरालीक्स ..अब गुर्दे की पथरी कब निकल गई पता ही नहीं चलता है, आगरा में यूरोलॉजिस्ट डा. मधुसूदन अग्रवाल ने मिनी व माइक्रो परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (पीसीएनएल) का प्रशिक्षण दिया। रविवार को रेनबो हॉस्पिटल में यूरोलॉजिकल एसोसिएशन आॅफ उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के तत्वावधान में मिनिमल इनवेसिव यूरोलॉजी पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें डा. मधुसूदन अग्रवाल ने बताया कि इस तकनीक का ज्ञान डॉक्टरों में होने से मरीजों को फायदा पहुंचेगा। दूरबीन व अन्य उपकरण हाईटेक होने से सर्जरी को बेहतर हुई है। इस विधि द्वारा गुर्दे की पथरी को बिना चीर-फाड़ के चूरा करके निकाला जाता है। रेनबो हॉस्पिटल में समय-समय पर कार्यशाला के माध्यम से देश-विदेश से आए चिकित्सकों को इस अत्याधुनिक विधि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस विधि से मरीज को रोग मुक्त होकर पूर्ण स्वस्थ होने में बहुत कम समय लगता है। रक्तस्त्राव की संभावना भी नगण्य हो जाती है। इतना बारीक छेद किया जाता है कि टांका लगाने की भी जरूरत नहीं होती। अगले ही दिन मरीज की छुट्टी कर दी जाती है। डा. मधुसूदन अग्रवाल ने बताया कि यह विधि इतनी आधुनिक है कि भारत ही नहीं विश्व भर के गिने-चुने अस्पतालों में ही उपलब्ध है। बता दें कि पिछले दिनों डा. मधुसूदन को यूरोलॉजी के विश्व सम्मेलन में इस विधि से आॅपरेशन करने के लिए सम्मानित भी किया गया था। इस दौरान मुख्य रूप से डा. अनुराग यादव, डा. दिलीप मिश्रा, डा. विजय बोरा, डा. दीपक परौलिया, डा. मनोज शर्मा, डा. सुधीर वर्मा आदि मौजूद थे।
क्या है मिनीमली इनवेसिव एंड्रोलॉजी?
इस तकनीक के जरिए मात्र पेन की रिफिल जितनी मोटी लेजर बीम के जरिए किडनी की बड़ी से बड़ी पथरी का चूरा कर बाहर निकाला जाता है। रेनबो हॉस्पिटल में इस तकनीक के भारत में प्रचार-प्रसार और डॉक्टरों का ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य से मास्टर क्लासेज का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर से चिकित्सक आकर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि इस तकनीक का प्रचार-प्रसार बेहद जरूरी है। डॉक्टरों को इसका ज्ञान होगा तो मरीजों को अधिक फायदा मिलेगा। दुनिया के कुछ ही देशों में इस विधि से गुर्दे की पथरी निकालने के आॅपरेशन किए जा रहे हैं। भारत में भी कुछ ही शहरों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। पश्चििमी यूपी में आगरा इस तकनीक में अग्रणी है।रविवार को रेनबो हॉस्पिटल में यूरोलॉजिकल एसोसिएशन आॅफ उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के तत्वावधान में मिनिमल इनवेसिव यूरोलॉजी पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें डा. मधुसूदन अग्रवाल ने बताया कि इस तकनीक का ज्ञान डॉक्टरों में होने से मरीजों को फायदा पहुंचेगा। दूरबीन व अन्य उपकरण हाईटेक होने से सर्जरी को बेहतर हुई है। इस विधि द्वारा गुर्दे की पथरी को बिना चीर-फाड़ के चूरा करके निकाला जाता है। रेनबो हॉस्पिटल में समय-समय पर कार्यशाला के माध्यम से देश-विदेश से आए चिकित्सकों को इस अत्याधुनिक विधि का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस विधि से मरीज को रोग मुक्त होकर पूर्ण स्वस्थ होने में बहुत कम समय लगता है। रक्तस्त्राव की संभावना भी नगण्य हो जाती है। इतना बारीक छेद किया जाता है कि टांका लगाने की भी जरूरत नहीं होती। अगले ही दिन मरीज की छुट्टी कर दी जाती है। डा. मधुसूदन अग्रवाल ने बताया कि यह विधि इतनी आधुनिक है कि भारत ही नहीं विश्व भर के गिने-चुने अस्पतालों में ही उपलब्ध है। बता दें कि पिछले दिनों डा. मधुसूदन को यूरोलॉजी के विश्व सम्मेलन में इस विधि से आॅपरेशन करने के लिए सम्मानित भी किया गया था। इस दौरान मुख्य रूप से डा. अनुराग यादव, डा. दिलीप मिश्रा, डा. विजय बोरा, डा. दीपक परौलिया, डा. मनोज शर्मा, डा. सुधीर वर्मा आदि मौजूद थे।
क्या है मिनीमली इनवेसिव एंड्रोलॉजी?
इस तकनीक के जरिए मात्र पेन की रिफिल जितनी मोटी लेजर बीम के जरिए किडनी की बड़ी से बड़ी पथरी का चूरा कर बाहर निकाला जाता है। रेनबो हॉस्पिटल में इस तकनीक के भारत में प्रचार-प्रसार और डॉक्टरों का ज्ञान बढ़ाने के उद्देश्य से मास्टर क्लासेज का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश भर से चिकित्सक आकर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि इस तकनीक का प्रचार-प्रसार बेहद जरूरी है। डॉक्टरों को इसका ज्ञान होगा तो मरीजों को अधिक फायदा मिलेगा। दुनिया के कुछ ही देशों में इस विधि से गुर्दे की पथरी निकालने के आॅपरेशन किए जा रहे हैं। भारत में भी कुछ ही शहरों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। पश्चििमी यूपी में आगरा इस तकनीक में अग्रणी है।