Manjhi review: ‘जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं’
दशरथ मांझी को उनके जीवन काल में गहरोल गांव के बच्चे पहाड़तोड़ुवा कहते थे। उनकी पत्नी फगुनिया पहाड़ से गिर गई थीं और समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने की वजह से प्रसव के दौरान मर गई थीं। तभी मांझी ने कसम खाई थी कि वे अट्टहास करते पहाड़ को तोड़ेंगे। ‘जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं’। उन्होंने अपनी जिद पूरी की। इसमें 22 साल लग गए। रास्ते को आजकल ‘दशरथ मांझी मार्ग’ कहते हैं। बिहार के गया जिले के इस अनोखे इंसान की कद्र मृत्यु के बाद हुई।
‘मांझी-द माउंटेन मैन’ हिंदी सिनेमा में दूसरी बॉयोपिक है, जो किसी दलित नायक पर बना है। पहली बॉयोपिक डॉ.अंबेडकर पर है। दशरथ मांझी के इस बायोपिक में निर्देशक केतन मेहता ने गहरोल के समाज की पृष्ठभूमि ली है। यह फिल्म दशरथ के प्रेम और संकल्प की कहानी है। दशरथ तमाम विपरीत स्थितियों में भी अपने संकल्प से नहीं डिगता। वह पहाड़ तोड़ने में सफल होता है।
यह फिल्म पूरी तरह से नवाजुद्दीन सिद्दीकी के कंधों पर टिकी है। उन्होंने शीर्षक भूमिका के महत्व का खयाल रख है। उन्हें युवावस्था से बुढ़ापे तक के मांझी के चरित्र को निभाने में अनेक रूपों और भंगिमाओं को आजमाने का मौका मिला है। उन्होंने मांझी के व्यक्तित्व को समझने के बाद उसे प्रभावशाली तरीके से पर्दे पर उतारा है। जमींदार के अन्याय और अत्याचार के बीच चूहे खाकर जिंदगी चला रहे मांझी के परिवार पर तब मुसीबत आती है, जब दशरथ को उसका पिता रेहन पर देने की पेशकश करता है। दशरथ राजी नहीं होता और भाग खड़ा होता है। वह कोयला खदानों में सात सालों तक काम करने के बाद लौटता है।
प्रमुख कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे
निर्देशक: केतन मेहता
अवधिः 124 मिनट